रमणीय द्वीप झांझीबार से ९०३वीं कथा का शुभारंभ

  

 मानस रामरक्षा।। दिन-१ दिनांक-१०सितंबर कथा क्रमांक-९०३

रमणीय द्वीप झांझीबार से ९०३वीं कथा का शुभारंभ।।
रामचरितमानस स्वयं रामरक्षा है।।
उद्योग से धनवान हो सकेंगे,उद्यम से धन्यवान।।

सुनु मुनि तोहि कहउ सहरोसा।
भजहि जे मोहि तजि सकल भरोसा।।
करउ सदा तिन्ह के रखवारि।
जिमि बालक राखइ महतारि।।

सुरम्य मनमोहक रेतीले समुद्र तट और मनमोहक कोयल की असीम सुंदरता से ओतप्रोत झांझीबार तंजानिया (ईस्ट अफ्रीका)द्वीप में ९०३वीं रामकथा का मंगल आरंभ हुआ।कथा आरंभ पर निमित्त मात्र यजमान जसाणीपरिवार(टीनाभाई)की ओर से सब का हार्दिक अभिवादन हुआ।और इस कथा में भारत से आए लेखक पत्रकार एवं साधु संत बड़ी मात्रा में उपस्थित है।और कोरोना के चुस्त नियमों से इस कथा चल रही है।। आरंभ में भारत के हाई कमिश्नर के द्वारा सबका अभिवादन हुआ और हाई कमिश्नर ने यह भी बताया कि दारेसलाम आपको बहुत याद कर रहा है कृपया आप वहां भी एक दिन के लिए भी आना।।


कथा प्रारंभ पर बापू ने एक दृश्य कहा: रामचरितमानस तृतीय सोपान अरण्यकांड का अंतिम दृश्य।पंचवटी से जगदंबा जानकी माया सीता का अपहरण हो चुका है।एक असूर द्वारा,वो लंका ले गया,अशोक वाटिका अशोक वृक्ष के नीचे जानकी जी बैठी है।भगवान राम ललित नरलिला करते हुए लक्ष्मण के संग जानकी के वियोग में सीता खोज कर रहे हैं। जटायु मिले।जटायु ने सब बता दिया।केवल दर्शन के लिए ही प्राण रोककर पड़े हैं। आगे कबंध मिला तो कबंध का उद्धार करके शबरी के आश्रम में आए।।गुरु के शब्द याद आने से शबरी हर्षित हुई। गुरु ने कहा कि मुझे दर्शन नहीं हुआ तुझे होगा।खोजने मत जाना खुद यहां आएंगे, और अचानक राम आये, राम आने की खुशी तो हुई लेकिन सबसे ज्यादा प्रसन्नता सद्गुरु के वचन सफल हुए। गुरु निष्ठा सुफल हो गई।। फिर नवधा भक्ति की चर्चा हुई।।शबरी को भी पूछा। राम ब्रह्म है जटायु से भी पूछा। सबरी ने बताया कि आगे पंपा सरोवर जाकर सुग्रीव से मैत्री होगी।।लेकिन पहले मैं जाऊं क्योंकि वियोग में नहीं जी पाऊंगी। इसलिए योग अग्नि में में प्राण त्याग कर दूंगी।।


 बापू ने कहा कि कवि ईश्वर की विभूति है। कवि मनीषी है।।नारद जी उसी वक्त वहां से निकले जब भगवान प्रसन्न बैठे हैं। लेकिन नारद ने भगवान को वियोग में देखा।।उसी वक्त भगवान से पूछा कि मेरा विवाह विश्वमोहिनी से क्यों नहीं करने दिया?
और वहीं से राम ने जो जवाब दिया वहां निकलता है रामरक्षा स्तोत्र।।


और फिर बापू ने कहा कि इस रामकथा का नाम मानस रामरक्षा रखेंगे।।बापू ने बताया कि रामस्थ रमाबहन और जसाणी परिवार कथा के सिवा कुछ नहीं मांगता।।सेवा स्मरण में यह परिवार निमित्त बनता है। साहित्य जगत के वरिष्ठ जनों और बहुत से साधु संत भी यहां उपस्थित है।। उद्योग से धनवान हुआ जा सकता है। उद्यम से धन्यवान हुआ जा सकता है।। पहले सोचा था मानस रामलीला पर बोलूं। रामचरितमानस स्वयं राम रक्षा स्तोत्र है।। नारद ने पूछा और राम ने कहा कि मैं हर्ष सहित बैठा हूं और राम हर्ष के साथ उत्तर देते हैं कि जो व्यक्ति और तमाम भरोसा छोड़कर केवल एक भरोसो, एक बल,एक आस विश्वास, एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास- इसी न्याय से एक ही का भरोसा करता है उसकी मैं रक्षा करता हूं। जैसे बालक की रक्षा मॉं करती है।। मणी सांप से, हाथी के मस्तक से, या खदान से भी मिलता है। लेकिन जब राजा के मुकुट में जाता है तब ज्यादा शोभायमान होता है। कविता निकलती कहीं और है और इंटरप्रिटेशन कहीं और छवि बना देती है। महत्त्व का सूत्र प्रगट कहीं और होता है बापू ने कहा कि मेरा मौन कास्ट मौन नही है इष्ट मौन है।। एकलव्य का प्रसंग सुनाकर बापू ने कहा कि बहुत से प्रश्न उठे हैं लेकिन गुरु द्रोण का एक जवाब यह भी हो सकता है कि आपके विद्या से आपने एक भोंकते हुए कुत्ते का मुंह बंद कर दिया! और विद्या का उपयोग भोंकते कुत्ते को बंद करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।आप एक कुत्ते को बंद करेंगे लेकिन बाकी के कुत्ते भोंकते हैं वह बंद नहीं कर पाएंगे।।अविद्या के सामने विद्या की लड़ाई करोगे तो क्या होगा?


 और बापू ने कहा कि गर्भ में रक्षा परमात्मा करता है,गोद में मां रक्षा करती है,आंगन में पिता, गुरुकुल में आचार्य और गगन में गुरुदेव रक्षा करता है और फिर ग्रंथ महत्व और मंगलाचरण के मंत्र और वंदना के बाद हनुमंत वंदना करके आज की कथा को विराम दिया गया भारत में यह कथा दोपहर १२:०० बजे से जीवन देखी जा सकती है।।

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