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रोहिड़ा बिगोनिएसी परिवार के टेकोमेला वंश का वृक्ष है। इसे रोहिरा, रोही, रोहिटका आदि नामों से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम टेकोमेला अनडयूलाटा है। अंग्रेजी में इसे रोहिरा ट्री और हनी ट्री कहते हैं। रोहिड़ा अरब देशों में भी पाया जाता है। यहां यह वृक्ष शजरत अल असल के नाम से प्रसिद्ध है।
रोहिड़ा का फूल जो राजस्थान का राज्य फूल है जो मार्च अप्रैल में रेगिस्तानी इलाको में रोहिड़े के पेड़ पर खिलता है।
यह चट केसरिय पिले रंग का होता है। इसे 31 अक्टूबर,1983 को राज्य पुष्प घोषित किया गया था। यह पुष्प सुगंध रहित होता है। अब वे दिन बीत गए जब पुष्पों से लकदक रोहिड़े के पेड़ दूर से ही लोगो को आकर्षित कर लेते थे। इक्का-दुक्का स्थानो को छोड़ कर यह अनमोल व अत्यंत उपयोगी माना जाने वाला पेड़ अब आसानी से देखने को नहीं मिलता।
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यह शुष्क क्षेत्रों और बाहरी हिमालय का एक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी वृक्ष है। यह भारत के साथ ही पाकिस्तान और अरब देशों में भी पाया जाता है। पाकिस्तान में सिंध और बलूचिस्तान में इसकी संख्या अधिक है। भारत में इसे सागर की सतह से 1200 मीटर तक ऊंचाई वाले शुष्क भागों में देखा जा सकता है। यहां पर यह मूल रूप से राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब और हरियाणा में मिलता है। भारत के उत्तर-पूर्व में और पश्चिम भारत के थार के रेगिस्तानी क्षेत्रों में रोहिड़ा को प्रकृति का एक अनुपम वरदान समझा जाता है। यह राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र के लोगों के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस क्षेत्र में इसकी संख्या बहुत अधिक है। राजस्थान में यह जैसलमेर, जोधपुर, पाली, अजमेर, नागौर, बीकानेर, चुरू, सीकर आदि जिलों में बहुत बड़ी संख्या में मिलता है।
शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों का पतझड़ वाला वृक्ष है रोहिड़ा, किन्तु इस पर वर्ष के अधिकांश महीनों में पत्तियां रहती हैं तथा ऐसा बहुत कम समय होता है जब यह पूरी तरह पत्तियाें से रहित हो जाता है। अत: इसे लगभग सदाबहार वृक्ष अथवा अर्ध-सदाबहार वृक्ष कहा जा सकता है।
मध्य आकार का यह वृक्ष समतल मैदानों, पहाड़ी दलानों तथा घाटियों में उत्पन्न होता है। इसे उपजाऊ भूमि पर तथा खेतों के मध्य भी उगाया जा सकता है। रोहिड़ा की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसे रेत के स्थायी टीलों पर, जहां तापमान बहुत कम और बहुत अधिक हो, सरलता से उगाया जा सकता है।
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रोहिड़ा रेतीली मिट्टी में उगने वाला वृक्ष है। इसमें सूखा सहन करने की विलक्षण क्षमता होती है। यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगता है और अपना विकास करता है यह ज्ञात हुआ है कि यह 150 मिली मीटर से लेकर 500 मिली मीटर तक वर्षा वाले क्षेत्रों में अपना अस्तित्व बनाये रखता है। इसमें तापमान का उतार-चढ़ाव सहन करने की भी अद्भुत क्षमता होती है। यह सर्दियों में शून्य डिग्री सेल्सियस और कभी-कभी शून्य से भी दो डिग्री कम तापक्रम तक सहन कर लेता है। इसके साथ ही यह गर्मियों के मौसम में 43 डिग्री सेल्सियस तापक्रम में भी हरा-भरा बना रहता है। राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों में कभी-कभी तापक्रम 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इतनी गर्मी को आग बरसाने वाली गर्मी कहा जाता है। ऐसे मौसम में भी रोहिड़ा अपना अस्तित्व बनाए रखता है। वास्तव में रोहिड़ा के लिए सूरज की गर्मी बहुत आवश्यक होती है। सूरज की तेज गर्मी और प्रकाश में इसका जन्म और विकास होता है। इसकी शाखाएं जमीन की ओर नीचे झुकी हुई होती हैं तथा इन पर छोटी-छोटी पत्तियां लगती हैं। ये पत्तियां लंबी होती हैं तथा इनका आगे का भाग नुकीला होता है। इसकी पत्तियाें का ऊपर वाला भाग धूसरपन लिये हुए गहरे हरे रंग का होता है एवं नीचे वाला भाग कुछ हल्के रंग का होता है। रोहिड़ा के फल कुछ मुड़े हुए होते हैं एवं इसके बीज बालदार होते हैं। इन्हीं बालों के कारण यह हवा के साथ उड़कर राजस्थान में दूर-दूर के क्षेत्रों में फैल गया है एवं राजस्थान के बाहर भी उन क्षेत्रों में पहुंच गया है। जहां पर यह नहीं पाया जाता था।
रोहिड़ा का फूल बहुत खूबसूरत और शानदार होता है। इस पर सर्दियों के मौसम में फूल आते हैं। इसके फूल पीले, नारंगी और लाल रंग के होते हैं। तथा इसकी आकृति घंटी के समान होती है। सर्दियों के मौसम में रोहिड़ा वृक्ष फूलों से भर जाता है। राजस्थान ने इसी फूल को अपना राज्य पुष्प घोषित किया है।
खेजड़ी के समान रोहिड़ा पर भी राजस्थान की सेंट्रल एरिड जोन रिसर्च इंस्टीटयूट ने अनेक अनुसंधान कार्य किए हैं तथा बहुत से महत्वपूर्ण तथ्य प्राप्त किए हैं। इंस्टीटयूट द्वारा किए गए शोध से ज्ञात हुआ है कि रोहिड़ा के जीन अनेक प्रकार के होते हैं तथा इनमें आपस में बहुत भिन्नता होती है। वनस्पति शास्त्र की भाषा में इसे जीनोपाइप कहते हैं। इंस्टीटयूट के वैज्ञानिक अभी तक रोहिड़ा के 42 जीनों की खोज कर चुके हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि रोहिड़ा के इन्हीं जीनों के कारण रोहिड़ा की बहुत सी संकर प्रजातियां उत्पन्न हो गई हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसीलिए कभी-कभी रोहिड़ा एक झाड़ी के रूप में भी देखने को मिल जाता है। सेंट्रल एरिड जोन रिसर्च इंस्टीटयूट के वैज्ञानिक इस संबंध में अभी भी नए-नए शोध कार्य कर रहे हैं। इससे आशा है कि रोहिड़ा पर शीघ्र ही नयी-नयी जानकारियां मिलेंगी और इसकी संकर प्रजातियाें का अध्ययन करके इसका उपयोग किया जा सकेगा। रोहिड़ा वृक्ष का उपयोग मुख्य रूप से इसकी लकड़ी के लिए किया जाता है। इसकी लकड़ी बहुत मजबूत, कठोर और टिकाऊ होती है तथा इस पर नक्काशी का काम भी बहुत सरलता से किया जा सकता है। इसकी लकड़ी से इमारतों की खिड़कियां, दरवाजे, चौखट आदि बनाए जाते हैं, इसका फर्नीचर भी बहुत आकर्षक और टिकाऊ होता है। राजस्थान में नक्काशी का विशेष प्रचलन है। अत: लोग रोहिड़ा की लकड़ी का फर्नीचर बहुत पसंद करते हैं। इससे खेती के औजार, बक्से, कठौते आदि भी बनाए जाते हैं। यह औषधीय उपयोग का वृक्ष भी है। इसकी सहायता से विभिन्न प्रकार के रोगों की देशी और आयुर्वेदिक औषधियां तैयार की जाती हैं। इसकी सहायता से एक्जिमा तथा इसी प्रकार के त्वचा रोगों, फोड़े-फुंसी आदि की औषधियां बनती हैं। रोहिड़ा के विभिन्न अंगों की सहायता से बनाई गई दर्द निवारक औषधियां विशेष रूप से उपदंश (गर्मी) और पेशाब संबंधी रोगों की औषधियां बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई हैं। तिल्ली के बढ़ जाने पर इसकी सहायता से एक कारगर औषधि तैयार की जाती है, जो बड़ी लाभप्रद हाती है। रोहिड़ा वृक्ष के तने की छाल में निकोटिन नामक पदार्थ पाया जाता है। यह लीवर संबंधी रोगों में विशेष रूप से गुणकारी है। लिव-52 नामक विख्यात औषधि बनाने के लिए इसी का उपयोग किया जाता है। अनुसंधानों से ज्ञात हुआ है कि रोहिड़ा में त्वचा की जलन दूर करने वाले रसायन होते हैं।
आजकल रोहिड़ा की पत्तियों का रासायनिक अध्ययन किया जा रहा है। इससे आरंभ में ही कुछ चौंका देने वाले परिणाम प्राप्त हुए हैं। एक प्रयोग के अनुसार रोहिड़ा की पत्तियाें में अरसोलिक एसिड नामक तत्व पाया जाता है। इसमें एचआईवी विरोधी गुण होते हैं। अत: इसका उपयोग एड्स की चिकित्सा में तथा एड्स का टीका तैयार करने में किया जा सकता है।
रोहिड़ा की गणना उन वृक्षों में की जाती है जो पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसकी जड़ें मिट्टी की ऊपरी सतह पर फैल जाती हैं। इससे मिट्टी का कटाव रूक जाता है। अर्थात् यह मिट्टी को बांधे रखने का कार्य करता है। रोहिड़ा वृक्ष हवा के बहाव को भी नियंत्रित करता है।
राज्य पुष्प, राजस्थान का सागवान एवं मरूप्रदेश की शान कहलाने वाला रोहिड़ा अब अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। इसकी लकड़ी मे कीड़ा नहीं लगता है। मारवाड़ का टीक कहलाने वाला रोहिड़ा का पौधा बेहद कीमती व उपयोगी है। रोहिड़े की लकड़ी बेहद सख्त एवं हल्के भूरे रंग की होती है। लकड़ी की मजबूती के कारण इसका उपयोग फर्नीचर बनाने में किया जाता है, जबकि वर्षो से हवेलियो मे इस पौधे की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। बहुगुणी होने के कारण इसे राजस्थान का सागवान भी कहा जाता है। रोहिड़े का वानस्पतिक नाम टीकोमेला अंडुलेटा है। हमारा आग्रह है की हम सब इस बरसाती मौसम में अपने घरो व खेतो में इसे लगायें।
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